शाम कभी अकेले नही आती....
शाम कभी अकेले नहीं आती!
ये शाम कभी अकेले नहीं आती!
ये आती है तो लाती है अपने साथ अथाह स्मृतियों का ज्वार, उन पलों की, जो कभी गुजरे थे, तुम्हारे और मेरे दरम्यान, उसी अल्हड़पन , बेबाकी और बिंदासी के साथ, जिसके लिये जाने जाते थे हमदोनों!
सावन चल रहा है आजकल! चारों ओर हरियाली छाई हुई है और ऐसे मौसम में लाजिमी है खो जाना अतीत की सुनहरी यादों में और जी लेना एक हिस्सा उस दौर का भी ,जब हर रोज मैं तुम्हे देख पाता था, मिल पाता था और बातें.....बेहिसाब कर पाता था।
क्या कमाल का वक़्त था वो जब दिन के छह घण्टे क्लास में मेरे सामने तुम्हारे रहने के बाद भी मेरा जी नहीं भरता था तब मैं हर शाम साइकिल उठा चला आता था, तुम्हारी गली की ओर, तुम्हारे एक और दीदार के लिये, और तुम शाम को रसोई से खाना बनाना छोड़, किसी और देखते रहने को बोलकर, चंद पल के लिये बाहर दरवाजे पर आ जाया करती थी और उछाल देती थी एक चुम्बन हवा में, और मैं उसे पकड़ लेने मि कल्पना किया करता था।
हालाँकि बड़े ही कम समय के लिये होता था वो दीदार, पर जानती हो.....लम्बी देर तक किसी को देखते रहना अक्सर उतना यादगार नहीं बन पाता, जितना कुछ पल के लिये उसकी झलक मिल जाना!
शाम को खाना बनाकर, घर के हर आदमी को खिलाकर तुम जब फोन करती थी और वो स्पेशल वाला रिंगटोन बजता था, तो धड़क उठता था मेरा दिल और मेरे दोस्त कहते थे...."चल जा छत पर अब, बुलावा आया गया तेरा!"
और फिर मैं फोन उठाकर, इयरफोन का तार होंठों से दबाए हुए छत पर पहुँचता और उसी दौरान शुरू हो जाती थी बारिश!
पर सिर्फ एक बारिश नहीं.....दो दो बारिशें एक साथ हुआ करती थीं उस दौर में!
एक सावन की बारिश तो वो, जो भिगो देती थी पूरी प्रकृति को, और दूसरी वो, जो सिंचित करती थी हर शाम, हम दोनों के तप्त हृदयों को।
पर वो दौर कुछ और था....अब ये दौर कुछ और है!
अब भी हर शाम तुम्हारे इंतज़ार में ही बीता करती है.....इस कल्पना के साथ कि इस फोटो की तरह , सावन की बरखा के बीच कब तुम पायल छनकाती हुई मेरे पास आओगी!
आओगी न प्रिये??
वरना ये गाना तो है ही मुझे जिंदा रखे हुए........
"आजा के इंतजार में....
जाने को है बहार भी........"
- राहुल कुमार यादव

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