सर्वश्रेष्ठ प्रेम...♥️



 सर्वश्रेष्ठ प्रेम!

एक मेरे शिव हैं! जगतपिता! जगदीश्वर! पालक, संहारक ,विनाशक सबकुछ! जो हर्षित होते हैं तो नटराज बनकर चहुँओर हर्ष फैला देते हैं, मगन होकर नाचने लग जाते हैं और उस समय समूचा विश्व शिवमय हो जाता है!

  उनके भोलेपन की हद ये तक है कि कोई गलती से ही सही, रातभर उनपर बिल्वपत्र डालता रहा, तो उन्होंने उसे अपना अनन्य बना लिया और मासूम इतने कि जब माता पार्वती उन्हें खरी खरी सुनाती हैं, तो भी वह मुस्कुराते हुए सुन लेते हैं! और इतना ही नहीं, उनके रूठने पर उन्हें बड़े प्रेम से मनाते भी हैं!

  उनके प्रेम में किसी भी प्रकार का विकार नहीं है! किसी भी प्रकार के छल और कपट के लिए कोई स्थान नहीं! वह तो केवल और केवल समर्पित हैं अपनी वामांगी के लिए! अपनी अर्धांगिनी के लिए! आदिशक्ति के लिए!

  उनका समर्पण इस हद तक है कि वो स्वयं को शक्ति से अलग होने के बाद "शिव" नहीं, "शव" कहने लगते हैं! अपनी अर्धांगिनी के लिए उनके हृदय में सम्मान इतना है कि वो अपनी प्राणप्रिया का एक प्रिय पुष्प लाने के लिए महीनों तक उस ऋतु की प्रतीक्षा करते हैं, जिस ऋतु में वह पुष्प पल्लवित होता है, और जब देवी आदिशक्ति उनसे रूठते हुए पूछती हैं कि कहां चले गए थे आप? जाइए मैं आपसे बात नहीं करूंगी, तो वह मुस्कुराते हुए केवल वह पुष्प उनके आगे रखते हैं और कहते हैं, "तुम कहकर विस्मृत कर सकती हो, किंतु मैं अपनी वामांगी को दिया वचन पूर्ण करने में ही स्वयं की सार्थकता समझता हूं!"

कितना पवित्र है यह प्रेम!
 इतना ही नहीं! वह आदि, अनंत, अजन्मे हैं!भूत, भविष्य,वर्तमान सब उनकी मुट्ठी में कैद है!और इतने शक्तिशाली महादेव सब जानते हुए भी अपनी देवी को पिता के बिना बुलावे के, मायके जाने से रोकते हैं, मनुहार करते हैं!

 किंतु वहां सबकुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटता है और कैलाश पर आंखे मूंदे हुए भी मेरे प्रभु की आंखें छलछला उठती हैं! यह प्रसंग आते ही मैं स्वयं भावुक हो जाता हूँ!

 वहां हुए सती के अपमान और देवी के आत्मदहन के बाद वो तिलमिला उठते हैं और उस यज्ञ को तहस नहस करवा देते हैं! उनके प्रचंड क्रोध से सम्पूर्ण विश्व कम्पित हो उठता है! उनके नेत्रों की ज्वाला समूचे विश्व को लील जाने को तत्पर हो जाती है!

 और वह देवी का शरीर लेकर ब्रह्मांड में विचरने लगते हैं! वह हृदय तोड़कर रोते हैं, स्वयं को विस्मृत कर देते हैं और  समाधि में लीन हो जाते हैं पुनः किसी का हाथ न थामने की प्रतिज्ञा के साथ!

यह संसार का सर्वश्रेष्ठ प्रेम नहीं तो और क्या है!
और सुनिए! जब वही देवी आदिशक्ति माँ पार्वती के रूप में आती हैं और उन्हें वरण करने की ठान लेती हैं, तो भी शिव सबकुछ जानते हुए भी उन्हें यों ही वरण नहीं करते, बल्कि सबसे पहले उनकी तपस्या के दौरान उनकी कुंडलियों को जागृत करते हैं! पार्वती को अपने वास्तविक स्वरूप से ,आदिशक्ति से परिचित करवाते हैं! और ततपश्चात उनका वरण करते हैं!

 अर्थात प्रेम वही, जो सबसे पहले आपको योग्य बनाए!श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठतम बनाए!

 वह रूठते हैं, मनाते हैं! मनुहार करते हैं! वह सम्मान करना जानते हैं! उनके प्रेम में न तो किसी प्रकार का दिखावा है और न ही कोई स्थान है छल कपट के लिए!
वह खुलकर प्रेम करते हैं! वह भाव विभोर होकर नाचने भी लगते हैं तो समाधि में लीन होकर भी आदिशक्ति का, अपनी वामांगी का मार्गदर्शन करते रहते हैं!

 एक मेरे शिव हैं, जो पूरी तरह से वास्तविक हैं! जिनके कई स्वरूप होते हुए भी सबसे अधिक याद "भोलेनाथ" को ही किया जाता हैं! जानते हैं क्यों?

क्योंकि यह उनके सर्वश्रेष्ठ प्रेम का स्वरूप है!

ऐसा जो कही प्रेम दिखे तो बताना!

                            हर हर महादेव

                                                 - राहुल कुमार यादव

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