वापसी..
सब मशीन बन गए थे जैसे! सबकुछ तेज तेज हो रहा था! शायद रोबोट भी इतनी जल्दी अपने प्रोग्राम की कमांड नहीं मानते होंगे, जितना आज से कुछ हफ्ते पहले तक का इंसान मान रहा था! यह सत्य है कि उत्पादन के लिए श्रम की आवश्यकता होती है, किंतु अत्यधिक उत्पादकता की दौड़ ने मानव को रोबोट बना दिया था!
कोई चाँद पर जमीन लेने की तैयारी कर रहा था, कोई मंगल पर वायु ढूंढने निकला था! कोई पड़ोसी देश की जमीन कब्जियाने चला था, कोई न्यूक्लियर रिसर्च से समूची सभ्यता को डराना चाहता था!और भी तमाम विध्वंसक उद्देश्य मानव ने अपने मन मस्तिष्क में धारण कर लिए थे और उनकी पूर्ति के लिए वो किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था!
एक जल दिवस, एक पृथ्वी दिवस, एक हरियाली और एक पर्यावरण दिवस मनाकर, जन्मदिन के दिन कुछ पौधे लगाकर मानव ने प्रकृति के प्रति अपने दायित्व की इति श्री कर ली थी! यह सत्य है कि प्रकृति आपको निःशुल्क शुद्ध वायु, शुद्ध फल, फूल और भी तमाम उत्पाद देने के एवज में आपसे कुछ भी नहीं मांग रही थी! उसे क्या चाहिए था? बस थोड़ी सी परवाह, थोड़ी सी संवेदना! वैसी ही परवाह जैसा आपके पास अपने प्रियजनों के लिए है!
किंतु नहीं! आपने केवल और केवल शोषण किया! प्रकृति के उत्पादों का न केवल उपभोग किया, बल्कि दोहन किया! और ऐसे में मुझे अमिश त्रिपाठी की शिवा ट्रिलजी में लिखा यह वाक्य याद आता है कि....
"जब अच्छाई का हद से अधिक दोहन किया जाता है, तो वह बुराई बन जाती है!"
आज देखिए! मैंने जब से होश संभाला है, सर्दी के मौसम में इतनी वर्षा आजतक नही देखी! नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी, फरवरी, हर महीने में बारिश....वो भी तीन चार दिन तक लगातार! फसलों की बर्बादी! कई देशों में भुखमरी की स्तिथि! और अब सबसे बड़ी त्रासदी, कोरोना वायरस!
एक डेटा में पढा था कि हर सौ साल पर प्रकृति अपना बदला लेती है!
1720 में मर्सिली में प्लेग फैला! लाखो लोग मरे!
1820 में एशिया में हैजा की महामारी में भी लाखों मरे!
1920 में स्पेन की फ्लू में असंख्य मौतें हुईं!
और अब 2020 में कोरोना वायरस आपके सामने है!
जानते हैं! हम सनातनी प्रकृति को माता मानते हैं! पेड़ पौधों की पूजा अनादि काल से होती आई है! लेकिन हालिया दशकों में विकसित होने की होड़ में हम अपनी जड़ों को भूल गए हैं! मानव प्रकृति का केवल उपभोग और दोहन कर रहा है! फिर भी मुझे लगता है कि इस दोहन का बदला प्रकृति को जितनी क्रुरता से लेना चाहिए, वो नहीं ले रही है! आखिर माँ जो है!
वो माँ, अपने शिशुओं को सचेत कर रही है! अब भी वक़्त है! वापस जड़ों की ओर लौट आइए! कुछ दिन कोई काम न कीजिए! बस अपने परिवार को वक़्त दीजिए! वो वक़्त जो आप कभी अपने बच्चे, अपनी पत्नी और माता पिता को नहीं दे पाए, दोस्तों को नहीं दे पाए!
अब आ जाइए अपने घरों की ओर!बने रहिए! जल्द वापसी कीजिए! दिनभर घरवालों के साथ बैठकर मस्ती कीजिए! हँसी मजाक कीजिए! जम के खाइए, अच्छा अच्छा बनवा के! नवरात्रि आ रही है! देवी शक्ति की, प्रकृति की पूजा कीजिए!क्षमा मांगिए! कम से कम मन ही मन!
वापसी कीजिये! अच्छा लगेगा! बाकी महादेव सबकी रक्षा करें! सबको प्रसन्न रखें!

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