एक एहसास....❤️





मैं अभी बरेली में हूं, एम जे पी रुहेलखंड विश्वविद्यालय से बीटेक कर रहा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग ब्रांच से....💓💓🍀🍀🍁🍁🌸🌸

मैं एक ठेठ देसी गंवई देहाती लड़का हूं। एक सामान्य लड़का...! जिसे बचपन से खेल कूद में कोई रुचि नहीं थी, बस आरंभ से किताब पकड़ा दिया... केवल पढ़ाई.. और कुछ नही। मुझे एकांत बहुत पसंद है, ऐसे सामान्य अवस्था में बहुत कम बोलता हूं लेकिन परिचित हो जाने के बाद परेशान कर देता हूं। खेल कूद में अगर रुचि हुई तो थोडा बैडमिंटन नही तो विंडोज गेम जैसे कॉल ऑफ ड्यूटी, पबजी.. इत्यादि खेलना पसंद है।  

कोई भी व्यक्ति विशेष उद्धरण हों, मैं उससे भली भांति परिचित हूं, धरातल से जुड़ा हूं। मैंने पॉलीटेक्निक (डिप्लोमा) भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से ही की है। मेरे जीवन में आमूल चूल परिवर्तन बलिया से ही शुरू हुआ, मैंने इंटरमीडिएट पास करके डिप्लोमा में एडमिशन करा लिया और बलिया चला गया। बार बार घर आना, यातायात इत्यादि से कोई विक्षोभ न हो पढ़ाई में... मैंने यह तय किया कि मैं यहीं किराए पर कमरा लूंगा और वही रहकर पढ़ाई करूंगा। सब सोचा हुआ हो गया, सब व्यवस्थित कर मैंने वही रहकर पढ़ाई शुरू कर दिया.... एक साल रहा उसके बाद मेरे दोनों छोटे भाई भी आ गए वो भी मेरे साथ...उसके बाद हम तीन लोग आराम से रहते थे, पढ़ाई करते थे.. मैं उन दोनों को पढ़ाता था। सब सुसंगठित एवम् व्यवस्थित था। 

लेकिन वहां से पास आउट होने के बाद मैं यहां आ गया... अब रोहित रितेश स्वयं अकेले रहते हैं वहां..वो भी आत्मनिर्भर बन जायेंगे मेरी तरह... क्योंकि मैं जब तक उन दोनों के साथ था तो मेरे ऊपर सब जिम्मेदारी थी... पर अब रोहित के ऊपर है... रोहित भी सीख रहा...सीखेगा भी...सीखना ही पड़ेगा.... सब कुछ जब खुद करना पड़ता है तो एक तरह से पुनर्जागरण होता है। वैसे उनके मन में भी आता होगा की सब कैसे हैंडल होगा, हम दोनों को बलिया पहुंचा कर अपने बरेली भाग गए..खुद सब अब करना पड़ेगा, सब्जी लाना, खाना बनाना इत्यादि इत्यादि। लेकिन इतनी कम उम्र में खुद कहीं रह कर पढ़ना, खाना खुद बनाना.. बड़ी हिम्मत की बात है ये रोहित रितेश के लिए कह रहा.......अब बाहर रहना है तो करना पड़ेगा ही। खैर छोड़िए...! 

मैं एक बात कहूंगा जरूर बलिया भृगु बाबा के लिए प्रसिद्ध तो है ही उसके साथ साथ वहां की हवा में कुछ ना कुछ तो है..जो सबसे आपको अलग करता है... आप कुछ बड़ा सोचने लगते हैं, आप खुद आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करते हैं... ये नही कि आपको कोई बताता है... ये प्रक्रिया स्वयं होती है। मेरे अंदर भी बदलाव बलिया से प्रारंभ हुआ, वैसे एक बात बता दूं मैं भी बलिया जिले से ही हूं लेकिन मैं प्रॉपर बलिया शहर की बात कर रहा जहां मैं रह कर पढ़ाई करता था। मैंने आज तक जितने भी लोगों से मिला हूं जिन्होंने बलिया से पॉलीटेक्निक किया है उनकी बातें, जीवनशैली, व्यवहार इत्यादि... बहुत कुछ में परिवर्तन पाया हूं। 

किसी के जीवन में अपने पिता जी का होना; अहम योगदान होता है, उसके भविष्य को संरक्षित करने के लिए...। मेरे पिता जी का भी अहम योगदान कहूं तो ये शब्द तुच्छ ही लगता है... बस ये समझ लीजिए कि वो हैं...तो मैं हूं.... मैं उनके लिए ही हूं...मेरा जीवन उनके लिए समर्पित है, हमेशा, हर पल, हर क्षण... सदैव...!💓💓 

पिता जी का सपोर्ट, साहस और धैर्य ने मुझे हमेशा पुश अप करता रहा..बहुत भाग्यशाली हूं क्योंकि मैं जिस अंचल से हूं वहां और भी लोगों को देख के नकारात्मकता ही मन में सांप की तरह कुंडली मार के बैठती है, लेकिन पिता जी ने उस नकारात्मकता सोच और मानसिकता जैसे माहौल और लोगों से दूर रखा। बहुत अच्छा लगता हैं जब अपना खुद अपने परिवार के लिए कोई भी रिस्क लेने में हिचकिचाते नही। क्योंकि जो व्यक्ति विशेष खुद के लिए ईमानदार, सच्चा है वो अन्य दूसरों के लिए भी उतना तो नही, वरन कुछ तो होगा ही। 

अब मैं बरेली आ गया, रोहित रितेश बलिया हैं, मां घर हैं, पिता जी कहीं और.... सब लोग अलग अलग जगह....लेकिन जब भी इकट्ठा हों तो उस रस की तुलना इस संसार से नही, ब्रह्मांड से भी नही की जा सकती। बहुत दुख होता है ऐसे स्थिति में... मैं जब पहली बार बरेली रहने आया था तो मुझे खुशी भी थी कि एडमिशन हो गया लेकिन बहुत दुखी हुआ था, मुझे रोना आ गया था क्योंकि घर की याद रूपी आग की लपटें इतनी तीव्र हो गई थीं कि कितना भी साहस रूपी जल उड़लने पर भी तृप्त होकर शांत नही हो रही थीं। मुझे उस दिन ऐसा लगा कि घर क्या होता है..? क्योंकि इतना दूर कभी कही गया नही था...बलिया भी रहते तो हर शनिवार को घर चले जाते थे, रविवार को पुनः बलिया आ जाते थे.. तब उतना समझ नही आया। मैं ऐसे हुं बरेली में, लेकिन हृदय से अपने घर हूं, घर जाने का बहुत मन करता है, कभी कभी मन में होता है कि आज चलते हैं घर....लेकिन नही हो पाता। ख़ैर जो होता है अच्छे के लिए होता...आपका भविष्य आपके ही हाथ में है..आप जैसे करेंगे परिणाम आपको दिखेंगे...आज अगर रो रहें हैं तो कल हसेंगे भी...

घर की बहुत याद आती है, खास तौर पर जब मैं अकेले होता हूं, या किसी अपने को देख लेता हूं, इसलिए अब बहुत कम फेसबुक खोलता हूं.. क्योंकि आधे से अधिक लोग फेसबुक पर ही दिख जाते हैं... शरीर के रोएं खड़े होकर दिशा प्रदर्शित करने लगते हैं कि घर इस दिशा में पड़ता है... सबको मिस करता हूं। वैसे शिक्षा का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है, लेकिन मेरी उतनी समझ नही की मोक्ष क्या होता है, ना ही जानना है.. बस इतना जानता हूं जिस दिन काबिल हो गया अपनों को कष्ट नही होने दूंगा... जितना मुझसे होगा उससे अधिक करने की कोशिश करूंगा....🌼🌻🌿🍀🌹

एक बात और कहूंगा कि ...कैसे वो निष्ठुर, निर्दयी लोग होते हैं जो अपने परिवार, माता पिता, भाई बहन इत्यादि सबको छोड़ छाड़ के विदेश कमाने चलें जाते हैं, कोई सऊदी चला जाता तो कोई अमीरात....इत्यादि.... कैसे रहते होंगे अपनों के बिना.... खैर सबकी अपनी अपनी कुछ कहानी...

मैं यहां आया हूं तब से कुछ न कुछ सीख ही रहा... बरेली थोड़ा सा फास्ट है... ज्यादे नही लेकिन कुछ तो है। पढ़ाई भी अच्छी हो रही है, मजा आ रहा है.. बोरिंग फील नहीं होता...
थोड़ा यहां के लोगों की जीवन शैली कुछ अलग है... फास्ट भी हैं...यहां पर बाटी चोखा नही मिलता है... जहां तक मेरी समझ है.. ना ही कोई जानता है उसके बारे में... घाटी के बारे में पता नही है यहां सबको....कभी कभी ऐसा लगता है कि ये लोग पहली बार सुन रहे कि क्या होता है घाटी.... ख़ैर।

वैसे मुझे बरेली अच्छा नही लगा अभी तक... एक बार घूम कर देखता हूं कैसा है ....उसके बाद बरेली पर लिखूंगा। 

जीवन संघर्ष है, एक रणभूमि है.. युद्ध खुद से ही है। 

ये जीवन है न..अपने लिए नही है। यह जीवन उनके लिए हैं जो आपको जीवन दिए हैं...क्योंकि थोड़ा अंतर्मन में झांक कर उस प्रतिबिंब को देखिए... जो आपसे उम्मीदें रख कर अपना सुख चैन त्याग दिया है....खुद के लिए न जिएई, दूसरों के लिए जिएई... तब देखिए कैसी आपको अनुभूति होती है....💓💓

मैं ये नही कह रहा की मैं आदर्श हूं, ना ही मुझे बनना है आदर्श...क्योंकि आदर्श कोई भी वस्तु एक्सिस्ट्स ही नही करती। मैं जैसा हूं खुद के लिए हूं, जो मेरे है वो मेरे लिए श्रेष्ठ हैं, वही सब कुछ हैं। रास्ते चलते उपदेश देने वाले मिलेंगे, लेकिन तय आपको करना है कि आप क्या करेंगे..आप अनुयायी नही है...आपको मस्तिष्क मिला है उसका उपयोग करिए।

मेरा जीवन मेरे परिवार के लिए समर्पित है, मैं जहां भी खड़ा हूं मेरे पीछे परिवार है, मेरा समाज है, मेरे चाहने वाले लोग हैं.. मैं खुद के तुच्छ लाभ के लिए इतने लोगों की भावनाओं पर जहर नही उड़ेल सकता...मुझे शुरू से कुछ बड़ा करने की चाह थी जिसके लिए मैं ईमानदारी से उस कर्तव्य पथ पर अग्रसर हूं.... मैं करूंगा;.. वादा है खुद से....मुझे लिखने का बहुत शौक है...लेकिन मैं हमेशा नही लिख पाता... थोड़ी व्यस्तता भी रहती है, साथ ही साथ मुझे कुछ भावात्मक उत्प्रेरक रूपी तत्व चाहिए होता है, जब अंदर से आता है कि आज कुछ लिखते हैं.. उस दिन सब कुछ छोड़ छाड़ कर बस......लिखते हैं...

मित्रों..!... आपको प्रेरणा किताब की कहानियों से लेने की जरूरत नही है....आप स्वयं के लिए उत्प्रेरक है आपके अंदर ही सब कुछ है।.. मैं मानता हूं कि हर एक इंसान अपने आप मे प्रेरणा भी है और एक जीवंत कहानी भी है।

हमारी कहानी का ये अंश तो बहुत सूक्ष्म है... अंदर तक लिखूंगा तो आपकी संवेदना जागृत हो उठेगी और आप एक क्षण के लिए अति भावुक भी हो जाएंगे।

                                                                                                                  - राहुल कुमार यादव





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