नवरात्रि विशेष


  दशहरा की शुभ अवसर चारों तरफ पटाखा और मूर्तियों का कतार लग जाती है। माहौल खुशनुमा हो जाता है, अब लोग माँ की भक्ति में इतना लबालब हो जाते हैं कि उनको और कोई चीज़ की फुर्सत ही नही होती। बचपन से ही दशहरा देखते आ रहे हैं, और इसके आने का इंतेज़ार भी रहता है। चारों तरफ पटाखों की गूंज, अच्छे-अच्छे पवन सिंह व खेसारी लाल यादव के भक्ति भजनों व गानों की आहट चारों तरफ सुनाई देती है। देख के मन एकदम प्रफुल्लित हो जाता है, माँ के दर्शन मात्र से ही जठराग्नि संतृप्त हो जाती है।
   एक बात जानते हैं हम लोग गांव के कवनो दबंग भैया के अगुआई में बाँस के रेल फाटक जइसन बना के मूर्तियों के लिए चन्दा वसूलते थे और प्रसाद भी हम ही लोग तैयार करते थे....क्या वे दिन थे कभी विसरता नही है। चन्दा काटने से लेकर और प्रसाद बनाने तक, नौ दिन से नौ रात तक खूब काम करते थे। भूख प्यास तो लगता था कि कही गुम हो गया है। ट्रैक्टर ट्रॉली से मूर्ति लाने में और रोड पर जयकारा लगाने में इतना आनंद और सुख की अनुभूति होती थी कि उसकी कल्पना भी हम नही कर सकते।
  हमारी ओर काफी बड़ा मेला भी लगता है। सप्तमी से नवमी से तक तीन दिन मेला में रेला हो जाना मन आनंदित हो जाता था। अगर साथ में भौजी भी हो तो अलगे आनंद था , गुरहि जलेबी तो खूब खाते थे और घर के लिए भी लेकर आते थे। सब लोगों की काफी पसंद थी गुरहि_जलेबी। फुलकी भी खूब खाते थे। खूब न मज़ा आता था। मेला में तो बहुत प्रकार के खेल भी होते थे, हम लोग तो खेल का आनंद भी लेते थे। जैसे बंदूक से फुलवना फोड़ना....☺️। पता चलता था कि कोई मेले में गुम हो गया तो मुख्य मंच पर जाकर माएक में एनाउंस करते थे। हम तो घर के जितने छोटे बच्चे थे न उनके बगली में एक फरख्ति डाल दिए रहते थे, उस पर घर का पता और नम्बर लिखा रहता था। आप भी ऐसा करिए.....
  पर आज तो सब लोग व्यस्त हैं उनके पास तो समय ही नही की वे आज बाहर निकल के चन्दा काटें, स्कूल भी दशहरा के समय बन्द हो ही जाते हैं। आज तो माँ का प्रसाद बनाने और बांटने के लिए भी लोगों को ढूढंना पड़ता है। सप्तमी को भी खबर नही है कि कौन मूर्ति लाएगा..कौन क्या करेगा। आज तो लोग सेल्फी में व्यस्त हैं। आज चारों तरफ वो कोलाहल भी मौजूद नही, सन्नाटा छाए हुए है। ऐसा लगता है कि हम लोग अब बड़े हो गए है और चालाक भी। पिता जी भी यहां नही वे भी कोलकाता के पंडाल से ही इमो या डुओ पर लाइव हैं, पर यहां उपस्थित नही। पैसों की झनझनाहट एटीएम तक ही सीमित रह गई, भीड़ है पर कोई आवाज नही।
  माता रानी का विदाई होता था तो आंख से आँसू आ जाते थे क्योंकि नव दिन अपने आप को न्योछावर कर दिए होते थे उनके वात्सल्य प्रेम में। पर आज तो विसर्जन के नाम पर ऐसे ऐसे अश्लील गाने उल्टा-सीधा बजा के नागिन डांस करते हैं कि देखता हूं तो मन करता हैं कि सालों पर आग ही उगल दूँ। पहले ऐसा नही था मित्रों..... हम माता रानी से आग्रह करेंगें कि इन जैसे लोगों को सद्बुद्धि दें, जिससे ये अपनी संस्कृति को प्रज्वलित करें कलंकित नहीं।
   साफ़ सफाई और शांति से इस पर्व को मनाये और माहौल को खुश करें..........धन्यवाद
                           
                                        - राहुल कुमार यादव                                                              (महादेव)

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