कुछ अनकही ❤
सुनो प्रिये ,
प्रेम में जब कोई प्रेमी या पुरूष अपनी प्रेयशी या पत्नी में खुदके माँ की छवि देखता है तो उस पल वो पुरुष अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के पवित्रता में सर्वश्रेष्ठ मुक़ाम पे होता है।
तुम भी मेरे लिए वही हो, मैं तुम में अपनी माँ को देखता हूँ, तुमसे अपनी माँ जैसी प्रेम की आकांक्षा रखता हूँ। सुनो तुम्हेँ गर्व होना चाहिए और तुम्हें ही नहीँ उन तमाम प्रेमिकाओं और पत्नियों को गर्व करना चाहिए खुद पे जिनमें जिनका प्रेमी अपनी मां को ढूंढ रहा होता है, जो एक अद्भुत के साथ साथ अपने आप मे मुक्कमल स्त्री होने की प्रमाणिकता को स्थापित कर रही है अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ प्रेम को तुम्हारे हाथों में सौंपकर। ये सिर्फ इतना ही नहीं है ,मेरा ये कहना की मैं तुम में अपनी माँ को देखता हूँ इस बात का परिचायक भी है कि तुम्हारे प्रेम की ताकत तुम्हें किस हद तक कि मिल्कियत देता है ।
आज इतना ही बाकी फिर कभी जब ये बादल फिरसे आएगा और तुम्हारी यादों का ज्वार लाएगा तो एक ख़त लिखूंगा। तुम्हारा आना एक अद्भुत मौसम के आने जैसा है ,मेरे जीवन मे जिसका रंग कभी फीका न पड़े।
- राहुल कुमार यादव
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